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पुस्तक “हिन्दी के बाल-साहित्य पर भूमण्डलीकरण का प्रभाव” का लोकार्पण किया गया

Report by Sourav Ray

रांची: प्राचार्या डॉ सुप्रिया एवं प्रोफेसर इंचार्ज डॉ विनीता सिंह के द्वारा हिंदी विभाग रांची विमेंस कॉलेज की सम्मानित शिक्षिका डॉ कुमारी उर्वशी की आइसेक्ट पब्लिकेशन से जनवरी 2025 में प्रकाशित पुस्तक “हिन्दी के बाल-साहित्य पर भूमण्डलीकरण का प्रभाव” का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर प्राचार्या डॉ सुप्रिया ने कहा कि यह पुस्तक न केवल हिंदी साहित्य के विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि बाल-साहित्य पर वैश्वीकरण के प्रभावों को समझने के लिए भी एक आवश्यक पहल है।
“हिन्दी के बाल-साहित्य पर भूमंडलीकरण का प्रभाव” पुस्तक में इस विषय पर गहन शोध किया गया है कि कैसे वैश्वीकरण और आधुनिक तकनीकी बदलावों ने हिंदी के बाल-साहित्य को प्रभावित किया है। इस पुस्तक का विमोचन हिंदी साहित्य और विशेष रूप से बाल-साहित्य के बदलते स्वरूप पर विचार-विमर्श का अवसर प्रदान करता है। शोधार्थियों और शिक्षकों को इस विषय पर सोचने और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करता है। डॉ विनीता सिंह ने कहा कि भारतीय समाज में सदियों से मौखिक कथा परंपरा, पंचतंत्र, जातक कथाएँ और लोककथाएँ बच्चों के मनोरंजन और नैतिक शिक्षा का प्रमुख स्रोत रही हैं। प्रेमचंद, सुभद्राकुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि साहित्यकारों ने हिंदी बाल-साहित्य को समृद्ध किया। 1990 के बाद जब भारत में उदारीकरण एवं वैश्वीकरण बढ़ा, तब विदेशी लेखकों की पुस्तकों, डिज़्नी एवं कार्टून नेटवर्क जैसे चैनलों का प्रभाव बढ़ा। “हैरी पॉटर”, “स्नो व्हाइट”, “सिंड्रेला” जैसी कहानियों ने भारतीय बच्चों पर गहरी छाप छोड़ी।ऑनलाइन माध्यमों, वीडियो गेम्स, डिजिटल स्टोरीटेलिंग और ऑडियोबुक्स ने बच्चों के साहित्यिक अनुभव को बदल दिया। बच्चे अब पारंपरिक कहानियों की तुलना में एडवेंचर, फैंटेसी और साइंस फिक्शन की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं। हिंदी बाल-साहित्य में अंग्रेज़ी शब्दों एवं वाक्य संरचना का प्रचलन बढ़ा है।पश्चिमी संस्कृति से प्रेरित कहानियों में भारतीय नैतिक मूल्यों की तुलना में स्वतंत्रता और व्यक्तिगत उपलब्धियों को अधिक महत्व दिया जाने लगा है।

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