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सड़क के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति… झाड़ते-छूते हाथ आती सड़क!….

गिरिडीह: सड़क निर्माण की मांग करते हुए ग्रामीणों को कई साल बीत जाते हैं और बड़ी मुश्किल से मांग पूरी होने के बाद सड़क निर्माण या मरम्मत की मंजूरी मिलती है. ग्रामीणों की मांग पर सरकार सड़क निर्माण के लिए करोड़ों रुपये की मंजूरी देती है. लेकिन सड़क निर्माण से पहले ठेकेदार और अधिकारियों के बीच राशि के बंटवारे को लेकर योजना तैयार की जाती है.

इसका नजारा ग्रामीण पथ निर्माण विभाग द्वारा मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत जमुनियाटांड़ से जसपुर तक 2.80 करोड़ रुपये की लागत से बनाये जा रहे 8.2 किमी सड़क सुदृढ़ीकरण कार्य के दौरान दिखा. जब भ्रष्टाचार की परत सड़क से उखड़ने लगी। इसके बावजूद जिम्मेदार अधिकारी मौन हैं, इसके बनने के साथ ही इस आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में सड़क की हालत खराब होने लगी है। बनने के कुछ दिन बाद ही सड़क एक तरफ से उखड़ने लगी है। सड़क की यह दुर्दशा सड़क निर्माण में लापरवाही के कारण है। इससे लोगों में अधिकारियों व संवेदक के प्रति आक्रोश है.

झाड़ू लगाने से ही सड़क हाथ में आ जाती है!
दरअसल, मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बन रही सड़क में गुणवत्ता को ताक पर रखा गया है, जहां अलकतरा के नाम पर सिर्फ काली परत नजर आ रही है. कहीं भी पैर रखने से सड़क टूटने लगती है। घरों के सामने झाड़ू लगाने और हाथ लगाने से सड़क हाथ में आ रही है. हालांकि, इस सड़क पर भारी वाहनों की आवाजाही नगण्य है. ग्रामीण भी इस बात से हैरान हैं कि विभाग के अधिकारियों की अनुपस्थिति में काम को जल्दबाजी में पूरा किया जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि ऐसी सड़क का कोई औचित्य नहीं है. यह इस सड़क से बेहतर पुरानी सड़क थी। सड़क के नाम पर बस खानापूर्ति की जा रही है, ग्रामीणों ने उपायुक्त से जांच कर सड़क दुरुस्त कराने और कार्रवाई करने की मांग की है.

विकास की बजाय ग्रामीणों को निराशा हाथ लगी
हालांकि जब हमने पथ निर्माण विभाग के कनीय अभियंता मेघलाल कुमार से फोन पर बात की तो उन्होंने बताया कि गुणवत्ता को लेकर शिकायत मिली है और इस पर कार्रवाई की जायेगी. अब देखने वाली बात यह है कि लापरवाही भरी कार्रवाई और जांच के बीच जिन ग्रामीणों के लिए सड़क बनाई जा रही थी उन पर ही भ्रष्टाचार की परत चढ़ गई है और ग्रामीणों को विकास की जगह निराशा हाथ लगी है।

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