रांची में 336वां रथ मेला 27 जून से होगा आयोजित, पूरी से मंगाई विशेष रस्सी और विग्रहों के वस्त्र
रांची:राजधानी रांची में इस वर्ष भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा का आयोजन 27 जून से किया जाएगा। जगन्नाथपुर मंदिर में आयोजित होने वाला यह 336वां रथ मेला ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। मेले को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं और मंदिर परिसर में रथों की मरम्मत तथा सजावट का कार्य पूरे जोर-शोर से चल रहा है। मंदिर के प्रथम सेवक सुधांशु नाथ शाहदेव ने जानकारी देते हुए बताया कि नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव द्वारा पूरी के तर्ज पर रांची स्थित जगन्नाथ मंदिर का निर्माण निर्माण वर्ष 1691 में कराया गया था तबसे लेकर अब तक रथ यात्रा को विशेष तौर पर भव्य रूप से मनाया जा रहा है।
पुरी से आई रस्सी और वस्त्र बनाएंगे रथ यात्रा को खास
इस बार रथ को खींचने के लिए पुरी (ओडिशा) से 50 मीटर लंबी विशेष रस्सी मंगाई गई है। यह रस्सी अत्यंत मजबूत और पारंपरिक रूप से रथ खींचने के लिए उपयुक्त होती है। साथ ही, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विग्रहों के लिए वस्त्र भी पुरी से मंगवाए गए हैं, जिससे इस वर्ष की रथ यात्रा को विशुद्ध जगन्नाथ परंपरा के अनुसार मनाया जा सकेगा।
रथ यात्रा को लेकर महत्वपूर्ण तिथियां कुछ इस प्रकार हैं
11 जून स्नान यात्रा – भगवान का पवित्र स्नान, फिर एकांतवास आरंभ
12-25 जून भगवान एकांतवास में – मंदिर में रंग-रोगन, सजावट
26 जून नेत्रदान उत्सव – भगवान के नेत्रों का पुनः अंकन एवं प्रथम दर्शन
27 जून भव्य रथ यात्रा – रथ को खींचने की परंपरा, जनसैलाब उमड़ेगा
स्नान यात्रा और एकांतवास की परंपरा
11 जून को स्नान यात्रा के अवसर पर तीनों विग्रहों का अभिषेक किया जाएगा, जिसके पश्चात भगवान एक पखवाड़े के लिए एकांतवास में चले जाएंगे। इस काल में मंदिर परिसर की साफ-सफाई, रंग-रोगन और सजावट की जाएगी। भगवान की अनुपस्थिति में विशेष पूजा पद्धति से पूरे मंदिर को पुनः रथ यात्रा के लिए तैयार किया जाता है।
नेत्रदान उत्सव – 26 जून को होंगे प्रथम दर्शन
एकांतवास की समाप्ति के पश्चात 26 जून को नेत्रोत्सव (नेत्रदान) मनाया जाएगा। इस दिन तीनों भगवानों के विग्रहों में नेत्रों की स्थापना की जाती है और श्रद्धालुओं को वर्ष का प्रथम दर्शन प्राप्त होता है। यह दिन अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।
रथ यात्रा के दौरान विशेष आयोजन और व्यवस्थाएं की गई हैं
विशेष भोग: मौसीबाड़ी में 8 दिन भगवान के विश्राम काल में रोज़ अलग-अलग प्रकार के भोग का आयोजन।
सांस्कृतिक कार्यक्रम: भजन, कीर्तन, लोकनृत्य और बच्चों की प्रतियोगिताएं।
सुरक्षा व्यवस्था: सीसीटीवी निगरानी, चिकित्सा सुविधा, जलापूर्ति और शौचालय की विशेष व्यवस्था।